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एंड्रयू सेरिस का जाना

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संदीप मुदगल

इस 20 जून को अमेरिका के मशहूर फिल्म समीक्षक एंड्रयू सेरिस का 83 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। एंड्रयु सेरिस फिल्म समीक्षा की उस पीढ़ी से थे, जिसमें पाउलिन केल और राॅजर एबर्ट जैसी हस्तियों का शुमार होता है। इनमें से राॅजर एबर्ट आज भी मौजूद हैं, लेकिन पाउलिन केल के बाद अब सेरिस के जाने से फिल्म समीक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा खालीपन आ गया है, जिसे भरना कठिन है। 1950 में अमेरिका के विद्रोही तेवर वाले अखबार ‘द विलेज वाॅयस’ की शुरुआत से जो लोग उससे जुड़े थे, उनमें एंड्रयू सेरिस भी थे। द विलेज वाॅयस के संस्थापकों में से हाॅवर्ड फास्ट भी थे।

अखबार के कलेवर के मुताबिक ही सेरिस की समीक्षाएं भी होती थीं। कई बड़े फिल्म निर्देशकों की विश्वविख्यात फिल्मों में से कुछ कमजोर अंशों पर जोर देना सेरिस की समीक्षाओं की विशेषता होती थी। उन्होंने डेविड लीन जैसे निर्देशकों की बाद की भव्य फिल्मों की तीखी आलोचना की, लेकिन उनकी आलोचना तर्कहीन नहीं होती थी। बेशक अधिकांश पाठकों को उनकी समीक्षाएं पूर्वग्रहों से पूर्ण नजर आती हों, लेकिन उनकी सिनेमाई दृष्टि अपनी तरह की विशिष्ट थी। कई वर्ष पहले पुस्तकालय में उनकी एक पुस्तक ‘कन्फेशंस आॅफ ए कल्टिस्ट आॅन सिनेमा’ से उनकी लिखी समीक्षाओं से मैं पहली बार रूबरू हुआ था। 1955 से 1969 तक के समय की फिल्मों पर लिखी उनकी छोटी-बड़ी समीक्षाओं का यह संग्रह अपने आप में सिने समीक्षा की एक टेक्स्ट बुक भी हो सकती है। किसी भी फिल्म को देखने का और फिर उस पर लिखने का क्या तरीका हो सकता है, इस पुस्तक से सीखा जा सकता है। उनकी अन्य पुस्तकों की तरह यह पुस्तक आज गूगल बुक्स पर उपलब्ध है।

फिल्म समीक्षा के क्षेत्र में एंड्रयू सेरिस के पूर्वग्रहों पर बात करनी जरूरी है क्योंकि वह आमजन की पसंद की समीक्षाएं नहीं लिखते थे। एंड्रयू सेरिस की समीक्षाएं कई बार कुछ इतनी तीखी होती थीं, कि उसे चाहे-अनचाहे नकारात्मक आलोचना की श्रेणी में रखना जरूरी हो जाता है। ऐसा क्यों था ? इसका एक कारण उनकी राजनीतिक विचारभूमि से आया दिखता है। ‘द विलेज वाॅयस’ अमेरिका में 1950 के मैकार्थीवाद के विरोध में वाम विचारधारा को आवाज देने के लिए शुरू किया गया था और जाहिर है हाॅलीवुड के फिल्म व्यवसाय की बागडोर धनिक वर्ग के हाथ में थी, जो उस समय पूरी तरह सरकार के साथ था। हाॅलीवुड के कई स्क्रीन राइटर्स और निर्देशकों को मैकार्थीवाद के समय सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा था। ऐसे में बौद्धिक वर्ग का कुपित होना निश्चित था। कुछ ऐसे ही कारणों से ‘द विलेज वाॅयस’ का प्रकाशन शुरू हुआ था।

एंड्रयू सेरिस को उनकी लिखी पुस्तकों ‘द अमेरिकन सिनेमा: डायरेक्टर्स एंड डायरेक्शंस’ और फ्रांसीसी सिने समीक्षकों द्वारा पारिभाषित ‘आॅट्य’ (आॅथर) थ्योरी को अमेरिकी समाज में प्रसारित करने के लिए याद किया जाएगा। ‘द अमेरिकन सिनेमा...’ में उन्होंने अपनी पसंद के मूक फिल्मों और कुछ बाद के 14 फिल्मकारों को शामिल किया था। बाद की पुस्तकों में उन्होंने कई अन्य फिल्मकारों के कार्यों की तीखी आलोचना की थी, जिनमें डेविड लीन, बिली वाइल्डर और स्टेनले क्यूब्रिक प्रमुख थे। कुछ ऐसे ही पूर्वग्रहों के कारण उन्हें अक्सर सिने समीक्षा के इतिहास की सबसे बड़ी हस्ती मानी जाने वाली पाउलिन केल का नंबर एक प्रतिद्वंद्वी भी माना जाता था, जो स्वयं कई नामी फिल्मकारों को अपनी समीक्षा के कठघरे में खड़ा रखती थीं।

आॅट्य थ्योरी का अर्थ सीधे-सीधे लेखक से लिया गया है। फ्रांसीसी फिल्म समीक्षकों ने 1950 के दशक की शुरुआत में ‘काजे द्यू सिनेमा’ नामक गहन बौद्धिक सिने पत्रिका में घोषित किया था कि निर्देशक ही फिल्म का लेखक होता है। इस विचार को अमेरिकी और शेष यूरोपीय सिने समीक्षकों ने हाथों-हाथ लिया था। इस थ्योरी के पक्ष-विपक्ष में कई आवाजें उठीं, लेकिन इससे बड़े-बड़े फिल्मकार एकमत थे। सिने निर्देशकों की सबसे ऊंची पांत में रखे जाने वाले निर्देशकों को ‘आॅट्य’ ही कहा जाता है। 

यह थ्योरी अपने आप में एक ‘थ्योरी’ है या नहीं, इस पर कई आलोचकों ने अपने-अपने विचार दिए। बाद में सेरिस ने भी आॅट्यो के संबंध में अपने विचारों में कुछ बदलाव लाते हुए कहा था कि आॅट्य अपने आप में एक थ्योरी न होकर ‘तथ्यों का जमावड़ा, फिल्मों के पुनरुत्थान की याद दिलाना, जाॅनर्स के नवीनीकरण और निर्देशकों को पुनः पारिभाषित’ करने भर का प्रयास है। कहना न होगा कि इस कथित थ्योरी के ही अंतर्गत समय-समय पर अमेरिकी और यूरोपीय व अन्य कुछ देशों के समीक्षकों ने अपने सिनेमा की बुनियाद रह चुके निर्देशकों को आज तक सिने स्कूलों, किताबों और यहां तक कि अमेरिकी सरकार की नेशनल फिल्म लाइब्रेरी के मार्फत जिंदा रखा है, जहां अमेरिकी सिनेमा की आज तक की असाधारण कृतियों को विशुद्ध सरकारी प्रयास से भावी पीढि़यों के लिए सुरक्षित रखा जाता है। अफसोस सिर्फ इस बात का है कि हमारे देश में आॅट्यो विषय पर कभी कहीं कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ी है।

एंड्रयू सेरिस की सिनेदृष्टि से सहमत या असहमत होना एक बात है, लेकिन समूचे अमेरिकी फिल्म समीक्षात्मक समाज पर उनके व्यापक असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनकी मृत्यु के बाद कई अमेरिकी अखबारों ने उन्हें अब तक का सबसे बड़ा फिल्म समीक्षक भी घोषित किया है। हाल में पाउलिन केल की वृहद जीवनी भी प्रकाशित हुई है - पाउलिन केल: ए लाइफ इन द डार्क। उसकी समीक्षा करने वाले एक समीक्षक का कहना है - सही और बोझिल तरीके से कहीं रोचक अनुभव होता है गलत और रोमांचकारी तरीके से लिखी समीक्षा पढ़ना होता है। एंड्रयू सेरिस के पूर्वग्रह अपनी जगह रखें तो भी उनका फिल्म लेखन बेहद अनोखा, रोमांचकारी और ज्ञानप्रद होता था। उनको विनम्र श्रद्धांजलि।

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