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Channel: बना रहे बनारस
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रानी केतकी की कहानी

सैयद इंशा अल्ला खांयह वह कहानी है कि जिसमें हिंदी छुट।और न किसी बोली का मेल है न पुट॥ सिर झुकाकर नाक रगडता हूं उस अपने बनानेवाले के सामने जिसने हम सब को बनाया और बात में वह कर दिखाया कि जिसका भेद किसी...

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जंगल का चंद्रमा, असभ्य चंद्रमा है

जितने सभ्य होते हैंउतने अस्वाभाविक ।आदिवासी जो स्वाभाविक हैंउन्हें हमारी तरह सभ्य होना हैहमारी तरह अस्वाभाविक ।जंगल का चंद्रमाअसभ्य चंद्रमा हैइस बार पूर्णिमा के उजाले मेंआदिवासी खुले में इकट्ठे होने...

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मंटो : ऐ दिल है मुश्किल जीना यहाँ

विद्यार्थी चटर्जीसआदत हसन मंटो यदि जी रहे होते तो इस साल वे सौ के हो जाते, यानी उस हिंदुस्तान से 35साल ज्यादा बुजुर्ग जिसे वे शिद्दत से मोहब्बत करते थे और पाकिस्तान नाम की एक अनजान ज़मीन पर जिसे छोड़...

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कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो

कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो बहुत बड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलोतमाम उम्र कहाँ कोई साथ देता है मैं जानता हूँ मगर थोड़ी दूर साथ चलो नशे में चूर हूँ मैं भी तुम्हें भी होश नहीं बड़ा मज़ा हो अगर...

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मिट्ठू

शैलेन्द्र साहू                बहुत छोटे शहरों की दुपहरें बहुत लंबी हुआ करती हैं और अगर छुट्टियों के दिन हों तो आप इन दुपहरों को सिर्फ सुन सकते हैं घर में बंद रहते हुए, कम से कम मेरी उम्र की मज़बूरी यही...

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एंड्रयू सेरिस का जाना

संदीप मुदगलइस 20 जून को अमेरिका के मशहूर फिल्म समीक्षक एंड्रयू सेरिस का 83 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। एंड्रयु सेरिस फिल्म समीक्षा की उस पीढ़ी से थे, जिसमें पाउलिन केल और राॅजर एबर्ट जैसी हस्तियों का...

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मैंने माण्डू नहीं देखा

स्वदेश दीपक काल : 1990 नवंबरस्थान : बताऊँगानहीं।  Footfalls echo in the memoryDown the passage which we Did not takeTowards the door we neverPenned in to the rose garden- T S...

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कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए

कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गएकहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए ।जले जो रेत में तलवे तो हमने ये देखाबहुत से लोग वहीं छटपटा के बैठ गए ।खड़े हुए थे अलावों की आंच लेने कोसब अपनी अपनी हथेली जला के बैठ...

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कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख

आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देखघर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआआज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरहयह हक़ीक़त देख,...

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टीम अन्ना की वजह से यूथ का बेशकीमती गुस्सा बर्बाद हुआ

शैलेन्द्र नेगीपिछले साल जब देश के मीडिया में टीम अन्ना और सरकार के बीच की अंताक्षरी चल रही थी तभी मुझे लग रहा था ऐसा कुछ भी है जो कमरों और फाईलों के अंदर चुपचाप चल रहा होगा। सरकार के सेक्रेट्रीज ने...

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ये हम गुनाहगार औरतें हैं

ये हम गुनाहगार औरतें हैंजो अहले जुब्बा की तमकनत सेन रौब खाएं न जान बेचेंन सर झुकाएं, न हाथ जोडेंये हम गुनाहगार औरतें हैं,के : जिनके जिस्मों की फसल बेचें जो लोगवे सरफराज ठहरे न्याबतें इम्तियाज ठहरेंवो...

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यारब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार1 नहीं हूँबाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँज़िन्दा हूँ मगर ज़ीस्त2 की लज़्ज़त3 नहीं बाक़ीहर चंद कि हूँ होश में, होशियार नहीं हूँइस ख़ाना-ए-हस्त4 से गुज़र जाऊँगा...

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मूरत सँवारने से बिगड़ती चली गई

हालाते जिस्म, सूरते जाँ और भी ख़राबचारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी ख़राबनज़रों में आ रहे हैं नज़ारे बहुत बुरेहोंठों पे आ रही है ज़ुबाँ और भी ख़राबपाबंद हो रही है रवायत से रौशनीचिमनी में घुट रहा है धुआँ और...

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अभिजान (अभियान) १९६२

संदीप मुद्गलअभिजान की कहानी को यदि एक वृताकार रूप में आभास करें तो उसके केंद्र में नायक नरसिंह (सौमित्र चटर्जी) है। इस तरह यदि नरसिंह यदि एक अणु है तो कथा के अन्य पात्र उसके चारों ओर...

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हम खड़े थे कि ये ज़मीं होगी...

आज वीरान अपना घर देखातो कई बार झाँक कर देखापाँव टूटे हुए नज़र आयेएक ठहरा हुआ सफ़र देखाहोश में आ गए कई सपनेआज हमने वो खँडहर देखारास्ता काट कर गई बिल्लीप्यार से रास्ता अगर देखानालियों में हयात देखी...

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आज पानी गिर रहा है

आज पानी गिर रहा हैबहुत पानी गिर रहा हैरात भर गिरता रहा हैप्राण मन घिरता रहा हैअब सवेरा हो गया हैकब सवेरा हो गया हैठीक से मैंने न जानाबहुत सोकर सिर्फ़ मानाक्योंकि बादल की अँधेरीहै अभी तक भी घनेरीअभी तक...

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बेगुनाह कौन है उस शहर में क़ातिल के सिवा

काम अब कोई न आयेगा बस इक दिल के सिवारास्ते बन्द हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवाबाइस-ए-रश्क़ है तन्हारवी-ए-रहरौ-ए-शौक़हमसफ़र कोई नहीं दूरी-ए-मंजिल के सिवाहम ने दुनिया की हर इक शै से उठाया दिल कोलेकिन इक...

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काम वह आन पड़ा है कि बनाए न बने

नुक्ता-चीं है ग़म-ए दिल उस को सुनाए न बनेक्याबने बात जहां बात बनाए न बनेमैं बुलाता तो हूं उस को मगर अय जज़्बा-ए दिलउस पेबन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बनेखेल समझाहै कहीं छोड़ न दे भूल न जाएकाश यूं भी हो कि...

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पर कहाँ पवित्र हुई है आत्मा अब तक

अनंत अज्ञात शून्य मेंएक आवाज़ उठती हैअंतर के धरातल परदिन भर फुसफुसाती हैअन्दर ही अन्दररह रह करसहम कर डर करघुट कर बड़बड़ाती हैसभ्यता के शाश्वत प्रवाह मेंडूब कर तिर करउठ कर गिर करकिनारे बैठ करमैं आकाश को...

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रूबरू : एस के पोत्तेक्कात्त

मलयालम के प्रख्यात लेखक एस के पोत्तेक्कात्त (१९१३-१९८२) सफल उपन्यासकार हैं | उनकी रचनाओं में जीवन का यथार्थ चित्रण मिलता है | कोषिक्कोद में जन्मे  पोत्तेक्कात्त का पूरा नाम शंकरन कुट्टी है | विश्व...

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